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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे ने कांग्रेस के उत्साह को बढ़ा दिया था, लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के नतीजे ने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के हौसले पर करारी चोट की है। पार्टी इससे उबरने का रास्ता तलाश रही है। नागपुर में कांग्रेस का अधिवेशन, राहुल गांधी की 6200 किमी की भारत न्याय यात्रा की जिद, कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की उत्तर प्रदेश के प्रभारी पद से मुक्ति को इसी का हिस्सा माना जा रहा है। इसके समानांतर सत्ताधारी दल उत्साह से लबरेज है। भाजपा की सत्ता के ब्रांड अंबेसडर होते जा रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराना विपक्ष के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। विपक्ष के नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री थोड़ा तंज कसते हुए कहते हैं कि अब तो मोदी की गारंटी भी चलने लगी है।
यह कहने में संकोच नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी राजनीति की बारीकियों के मर्मज्ञ और जनता की नब्ज टटोलने में माहिर हैं। उन्होंने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद आए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों को बड़ी संवेदनशीलता के साथ लिया है। उनके मार्ग दर्शन में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने न केवल तीन राज्यों में मुख्यमंत्री और वहां के मंत्रिमंडल की रुपरेखा से चौंकाया है, बल्कि इस सुनहरे अवसर को हर हाल में भुना लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। भाजपा के भीतर बढ़े उत्साह ने पार्टी के आधा दर्जन प्रवक्ताओं के चेहरे पर चमक लौटाई है। सुधांशु त्रिवेदी, संबित पात्रा, गोपाल कृष्ण अग्रवाल समेत किसी के भी चेहरे पर इसे साफ देख सकते हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद पुराने फार्म में लौट रहे हैं तो केन्द्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समय की नब्ज भांपकर बयान देने लगे हैं।
भाजपा का एजेंडा सेट: पीएम का चेहरा, हिंदुत्व, चहुमुंखी विकास, राष्ट्रवाद
भाजपा के नेता अब दावा करने लगे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए 350 सीटों के आंकड़े को पार करेगी। उत्तर प्रदेश के एक उपमुख्यमंत्री कहते हैं कि राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा हो जाने दीजिए। इसके बाद 2024 में भाजपा को 70 सीटों से नीचे मत गिनिए। लखनऊ के एक बड़े नेता ने कहा कि आखिर तीन राज्यों मे कांग्रेस का अहंकार धरा रह गया और इनमें मिली सफलता में मोदी की ही गारंटी चली न? भाजपा मुख्यालय में दो दिन पार्टी ने हाल में मंथन किया। इस मंथन से निकलकर आया कि 2024 की तैयारी और रणनीति बनाने के दौर से भाजपा काफी आगे निकल चुकी है। इस बारे में बात कीजिए तो भाजपा की आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय खासे उत्साहित नजर आते हैं।
दिल्ली के शास्त्री भवन में बैठने वाले एक केंद्रीय मंत्री कहते हैं कि हमारी पार्टी में मीडिया को इंटरव्यू देने के लिए लोग अधिकृत हैं। मैं उसमें नहीं आता। वह कहते हैं कि 2014 से ज्यादा सीटें 2019 में आई थी। सूत्र का कहना है कि दरअसल, भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पार्टी और देश हित में जो निर्णय लेना चाहता है, ले लेता है। संगठन के मामले में भी कड़े निर्णय लेने में संकोच नहीं होता।
वह कहते हैं कि 2024 में 2019 से कम से 40 सीटें अधिक आने वाली हैं। इसके पीछे आधार के नाम पर पहला कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सशक्त छवि को बताते हैं। दूसरा बड़ा कारण भाजपा का बहुसंख्यक हितों को ध्यान में रख कर सांस्कृतिक, धार्मिक प्रयास। कहते हैं कि राम मंदिर बन रहा है। भगवान राम की 22 जनवरी 2024 को प्राण प्रतिष्ठा होगी। यूएई के अबू धाबी में मंदिर के उद्घाटन में प्रधानमंत्री जाएंगे। जबकि विपक्ष राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में जाने और न जाने को लेकर भ्रमित है।
तीसरा बड़ा कारण आप देखिए। प्रधानमंत्री किसी को भूखा नहीं सोने दे रहे हैं। अब 2029 तक देश के 81.78 करोड़ गरीबों को पांच किलो अनाज मिलने का लक्ष्य रखा जा रहा है। एक्सप्रेस हाईवे पर लोगों की गाड़ियां दौड़ रही हैं। देश का चहुमुंखी विकास हो रहा है। देश के कोने-कोने में आम जनता खुद कह रही है कि देश की दुनिया में साख बढ़ी है।
विपक्ष: जहां भ्रम और टकराते विचार साथ नहीं छोड़ते
सबसे पहले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और इंडिया (आईएनडीआईए) गठबंधन। इंडिया गठबंधन का शुरूआती प्रारूप बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से भेंट के बाद आगे बढ़ा। इस रूपरेखा में राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की महत्वपूर्ण भूमिका थी, लेकिन मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इसकी ड्राइविंग सीट जद(यू) और तृणमूल कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दल को देने के लिए तैयार नहीं थी। जब कांग्रेस इस गठबंधन के ड्राइविंग सीट पर आई तो इसके रोडमैप के आकार लेने में ही तमाम दिक्कतें आनी शुरू हो गई। न मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस बड़े त्याग और समर्पण के लिए तैयार और न ही क्षेत्रीय दल। कांग्रेस के पूर्व महासचिव कहते हैं कि यह स्थिति तब है, जब गैर भाजपाई अधिकांश विपक्षी दलों के सामने खुद को राजनीति में बनाए रखने की चुनौती बढ़ रही है और कांग्रेस की भी सिमटते जाने की चुनौती बढ़ रही है।
कांग्रेस के महासचिव का कहना है कि राहुल गांधी की पहले चरण की भारत जोड़ो यात्रा के बाद पिछले कुछ महीने से पार्टी के कई बड़े नेता दूसरे दौर की भारत जोड़ो यात्रा के पक्ष में नहीं थे। लेकिन अब यह यात्रा जनवरी 2024 से शुरू होने वाली है। सूत्र का कहना है कि जब विपक्षी दलों के नेता एक मंच पर आए और इसका नाम आईएनडीआईए रखा तो प्रधानमंत्री ने इसे घमंडिया गठबंधन कहकर ताना मारा था? आपको याद है न? आज देखिए घमंडिया का घटक दल होने में कौन सा दल पीछे है? क्या देश की जनता को सबने बेवकूफ समझ रखा है? वह कहते हैं कि विपक्षी दलों को पहले इसको ठीक करना होगा। मेरे विचार में अब यह सब ठीक करने के लिए समय ही नहीं बचा है। अब तो सीधे तैयारी का समय है।
‘चुनाव आ गए पर अब तक इंडिया गठबंधन असमंजस में ही है’
2014 से भाजपा को सबसे अधिक सीटें उ.प्र. से मिलती हैं। 2024 में भाजपा के नेता उ.प्र. से 70 से अधिक सीटों की उम्मीद लगाए बैठे हैं। कभी कांग्रेस के लिए यह राज्य संजीवनी होता था। वर्तमान में उसके पास बस एक सीट है। अलीगढ़ के बिजेंद्र सिंह 90 के दशक से सक्रिय राजनीति में हैं। कहते हैं कि अभी तो आईएनडीआईए गठबंधन का स्वरुप ही मूर्त रूप नहीं ले पाया। पता नहीं है कि इसमें बसपा शामिल होगी या नहीं। कांग्रेस से सोनिया गांधी रायबरेली सीट से लड़ेगी या नहीं? सपा में किस सीट से और कितनी सीट से उसका उम्मीदवार होगा? सपा, रालोद या कांग्रेस के कितनी सीट पर उम्मीदवार उतरेंगे?
बिजेन्द्र सिंह कहते हैं कि भाजपा और उसके नेता पूरे प्रभाव और आक्रामक तरीके से चुनाव की रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। उनके उम्मीदवार तय करने की प्रक्रिया चल रही है। मार्च के दूसरे सप्ताह तक चुनाव की अधिसूचना जारी हो जाएगी। बिजेन्द्र सिंह कहते हैं कि भाजपा कमजोर नहीं बहुत मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में आखिरी समय में अगर उम्मीदवार की घोषणा होगी तो हम लड़ने का साहस आखिर कहां से जुटा पाएंगे? जब यह हाल उ.प्र. का है तो अन्य राज्यों का भी अंदाजा लगा लीजिए।
2024 में बड़ी लड़ाई है: राज्यों में भाजपा को मिलेगी चुनौती
कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं। तमाम सवालों के जवाब के बाद उन्होंने कहा कि यह कोई इंटव्यू नहीं है। छाप न दीजिएगा? अब जो कहा वह सुन लीजिए? वह कहते हैं कि इंडिया गठबंधन की हर राज्य में जरूरत नहीं है। जैस मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़,उत्तराखंड, हिमाचल,कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब। लेकिन उ.प्र., बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र जैसे तमाम राज्यों में इसे मजबूती देने की जरूरत है।
वह कहते हैं कि हम जिन राज्यों को गिना रहे हैं, इनमें पिछले चुनाव में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को अधिकतम सीटें मिलीं हैं, लेकिन इस बार सबकुछ बदलेगा। वह कहते हैं कि 2024 में भाजपा को जनता की नाराजगी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। राज्यों में भाजपा की लोकसभा सीटें काफी घटेंगी। हम सब मिलकर लडेंगे। दक्षिण भारत में वैसे भी भाजपा कर्नाटक को छोड़कर नहीं है। उसे आगामी लोकसभा चुनाव में तगड़ा झटका लगने वाला है। सूत्र का कहना है कि क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर हम भाजपा को हराएंगे। वह कहते हैं कि इसकी घबड़ाहट हमारे साथ आने के दिन से ही भाजपा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही है।
‘हड़बड़ी में 2024 लड़ेगा तो विपक्ष कीमत चुकाएगा’
एसके सिंह राजनीतिशास्त्री हैं। वह कहते हैं कि जनता के हित का एजेंडा छोडि़ए, विपक्ष अपना खुद का एजेंडा नहीं तय कर पा रहा है। विपक्ष का पहला एजेंडा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को हटाओ होना चाहिए। क्योंकि अब वह सत्ता के ब्रांड अम्बेसडर हैं। वह खुद की छवि को ही जनता में स्थापित करते चले जा रहे हैं। लेकिन इसएजेंडे को सेट करने में दो चीजें आड़े आ रही है। पहली यह कि कांग्रेस को मुख्य आधार देकर ज्यादा सीटें दे दें तो क्षेत्रीय दल सिमटने के खतरे से परेशान हैं। कांग्रेस उनके लिए अधिक सीटें छोड़ दे तो उ.प्र. और बिहार जैसा हाल होने का डर है। एसके सिंह कहते हैं कि एक बात और है। इसे प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री शाह और भाजपा अध्यक्ष पूरी शिद्दत से समझते हैं। इसलिए वह विपक्ष को एक होने से रोकने का हर उपाय करने से नहीं चूकते। फिर यह कहावत तो पुरानी है कि फूट डालो और राज करो।
एसके सिंह के साथ-साथ पूर्व सांसद बिजेन्द्र सिंह भी जोर देकर कहते हैं कि 2024 की चुनौती बड़ी है। हालात इसी तरह के बन रहे हैं कि अंत में विपक्षी दल आधी-अधूरी तैयारी के साथ हडबड़ी में लोकसभा चुनाव लड़ेगे। दोनों का कहना है कि ऐसा हुआ तो विपक्ष के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत सभी इसकी भारी कीमत चुकाएंगे।
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