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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मोनेटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) महंगाई को लेकर काफी गंभीर है और इस पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए है। एमपीसी की दिसंबर की बैठक से जुड़ी विस्तृत रिपोर्ट में खाद्य कीमतों पर अनिश्चितता से उत्पन्न मुद्रास्फीति के बढ़ते जोखिम पर कड़ी नजर रखने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। भाषा की खबर के मुताबिक, बीते शुक्रवार को इस संबंध में जारी जानकारी के मुताबिक, एमपीसी सदस्य शशांक भिडे ने कहा कि खाद्य मुद्रास्फीति पर चिंता व्यक्त की जो छह प्रतिशत से ऊपर बनी हुई है।
खाद्य मुद्रास्फीति पर रह सकता है दबाव
खबर के मुताबिक, शशांक भिडे का कहना है कि इस साल मानसून के मौसम के दौरान प्रतिकूल बारिश की स्थिति के असर के चलते कुछ मुख्य फसलों की पैदावार कम रहने की आशंका है जिसका असर खाद्य मुद्रास्फीति पर पड़ेगा। एमपीसी मीटिंग की डिटेल में यह भी कहा गया है कि कम अवधि में मुद्रास्फीति पैटर्न को प्रभावित करने वाले कारकों की एक सीरीज को ध्यान में रखते हुए ओवरऑल मुद्रास्फीति 2023-24 की तीसरी और चौथी तिमाही में क्रमशः में 5.6 प्रतिशत और 5.2 प्रतिशत तथा 2024-25 की पहली तिमाही में 5.2 प्रतिशत अनुमानित है। इसके बाद दूसरी तिमाही में इसके चार प्रतिशत और तीसरी तिमाही में 4.7 प्रतिशत रहने की संभावना है।
नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति 5.55 प्रतिशत बढ़ी
खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतों के चलते नवंबर में खुदरा मुद्रास्फीति 5.55 प्रतिशत बढ़ी, जो तीन महीने का उच्चतम स्तर है। आरबीआई के अधिकारी राजीव रंजन के मुताबिक विकास के मोर्चे पर, अर्थव्यवस्था पूरी गति से चल रही है और मौद्रिक नीति इस हाई ग्रोथ प्रोजेक्शन का समर्थन करने का सबसे अच्छा तरीका मूल्य स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखना है। एमपीसी में तीन आरबीआई सदस्य और तीन बाहरी सदस्य शामिल हैं। दिसंबर में लगातार पांचवीं बैठक में उसने रेपो दर को 6.50 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा था।
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