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सीमा कुमारी
नई दिल्ली: ये बात सच है कि तलाक किसी भी विवाहित जोड़े, परिवार और समाज के लिए दुख का विषय होता है। तलाक होने पर सिर्फ दो लोग नहीं, परिवार भी अलग हो जाते हैं, ऐसे में पति-पत्नी की संतानों पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
तलाक को अच्छा तो नहीं कहा जा सकता, पर जब रिश्ते बर्दाशत से बाहर चले जाते हैं, तब तलाक ही एक मात्र विकल्प बचता है। कई समुदायों में तलाक बुरा माना जाता है और उसके बाद औरतों की जिंदगी मुश्किल हो जाती है, लेकिन मातसुगोका टोकेई-जी टेम्पल जापान में बेहद खूबसूरत जगह पर स्थित है। यह मंदिर तलाकशुदा महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए दुनियाभर में जाना जाता है। इसे महिलाओं की स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। आप यहां की वास्तुकला देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएंगे। तो आइए जानें क्या है जापान में स्थित इस डिवोर्स टेम्पल का इतिहास।
इतिहास
‘डिवोर्स टेम्पल’ (Divorce Temple) या ‘तलाक का मंदिर’ यह नाम सुनने में जितना अजीब है, उतना ही अनोखा इसके पीछे का विचार भी है। Matsugaoka Tokeiji नाम के इस मंदिर को 600 साल पहले बनाया गया था। यह जापान के कामाकुरा शहर में स्थित है। जापान का यह मंदिर ऐसी कई महिलाओं का घर है, जो घरेलू हिंसा का शिकार बनीं। इसकी वजह भले ही बेहद दुखद और दिल दुखाने वाली हो, लेकिन इसकी सख्त जरूरत भी थी। सदियों पहले कई महिलाएं अपने अत्याचारी पति से बचने के लिए इस मंदिर में पनाह लेती थीं।
इस खास मंदिर को काकूसान-नी नाम की एक नन ने अपने पति होजो टोकीमून की याद में बनवाया था। यहीं उन्होंने उन सभी महिलाओं का स्वागत किया जो अपनी शादी से खुश नहीं थीं और न ही उनके पास तलाक लेने का कोई तरीका था।
कामकुरा युग में, पतियों को बिना कोई कारण बताए अपनी शादी को खत्म करने के लिए सिर्फ एक औपचारिक तलाक पत्र, “साढ़े तीन पंक्तियों का नोटिस” लिखने की आवश्यकता होती थी। वहीं, दूसरी ओर महिलाओं के पास इस तरह अधिकार नहीं था। इस शादी से भाग जाना ही उनके पास इकलौता चारा था। टोकेई-जी में तीन साल रहने के बाद, उन्हें अपने पतियों के साथ वैवाहिक संबंध तोड़ने की अनुमति दी जाती थी। बाद में इस अवधि को घटाकर सिर्फ दो साल कर दिया गया था।
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इस मंदिर को अक्सर “अलगाव का मंदिर” भी कहा जाता था। 600 साल पुराने इस मंदिर में साल 1902 तक पुरुषों का आना मना था। इसके बाद 1902 में एंगाकु-जी ने जब इस मंदिर की देखरेख संभाली तो पहली बार एक पुरुष मठाधीश को नियुक्त किया।
जानकारी के अनुसार, ये एक बौद्ध धर्म का मंदिर है। इसे 1285 में बुद्धिस्ट नन काकुसान शीडो-नी (Kakusan Shidō-ni) ने बनवाया था। 1185 से लेकर 1333 के बीच, जापानी औरतों की स्थिति बेहद खराब थी। उनके पास मूल अधिकार ही नहीं थे। इसके अलावा उनके ऊपर कई सामाजिक प्रतिबंध भी लगाए जाते थे। ऐसे में जो महिलाएं अपनी शादी में नहीं खुश थीं या घरेलु हिंसा का शिकार होती थीं, वो इस मंदिर में आकर रहा करती थीं।
कुछ समय बाद ये मंदिर उन औरतों को आधिकारिक रूप से तलाक के सर्टिफिकेट भी देने लगा जिससे वो अपनी जिंदगी खुशहाल ढंग से बिता सकें। ये सर्टिफिकेट कानूनी तौर पर महिलाओं को शादी से आजादी देता था। आज ये मंदिर महिलाओं को सशक्त करने के एक प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
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