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‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ के लिए बनाई गई उच्च स्तरीय समिति के प्रमुख और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे पर पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्तों (CEC) और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है। उनकी बैठकें समिति द्वारा इस मुद्दे पर जनता की राय मांगने के कुछ दिनों बाद हुई हैं। कोविंद ने बुधवार को मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी से मुलाकात की। एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, “आज दोपहर विचार-विमर्श जारी रखते हुए, उच्चस्तरीय समिति के अध्यक्ष ने दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोरला रोहिणी और पूर्व सीईसी सुशील चंद्रा के साथ चर्चा की।”
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने किया समर्थन
जब पूर्व सीईसी सुशील चंद्रा और न्यायमूर्ति रोहिणी ने रामनाथ कोविंद से मुलाकात की तब विधि सचिव नितेन चंद्रा भी मौजूद थे। चंद्रा उच्च स्तरीय समिति के सचिव भी हैं। इसमें कहा गया है कि परामर्श प्रक्रिया आने वाले दिनों में भी जारी रहेगी। सूत्रों ने कहा कि चंद्रा ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन करते हुए कहा कि इससे शासन को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी क्योंकि सरकारों को नीतियां बनाने और लागू करने के लिए अधिक समय मिलेगा। समझा जाता है कि उन्होंने यह भी कहा कि एक साथ चुनाव कराने से जनता की असुविधा कम होगी, मानव संसाधनों के उपयोग में सुधार होगा और बार-बार चुनाव कराने पर होने वाले खर्च में कमी आएगी।
जनता और राजनीतिक दलों से मांगे गए थे विचार
बता दें कि ये समिति पहले ही इस मुद्दे पर आम जनता और राजनीतिक दलों से सुझाव मांग चुकी है और उनपर विचार कर चुकी है। वहीं इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों, संवैधानिक विशेषज्ञों और पूर्व सीईसी सहित प्रख्यात न्यायविदों से भी उनके विचार जानने के लिए संपर्क किया गया है। पिछले साल सितंबर में गठन के बाद से समिति की अब तक दो बैठकें हो चुकी हैं।
इसने हाल में राजनीतिक दलों को पत्र लिखकर एक साथ चुनाव कराने के विचार पर उनकी राय मांगी थी और “परस्पर सहमत तिथि” पर बातचीत के लिये कहा था। बाद में समिति ने पार्टियों को एक अनुस्मारक भेजा था। इसके तहत 6 राष्ट्रीय पार्टियों, 33 राज्य स्तरीय दलों और 7 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों को पत्र भेजे गए। समिति ने एक साथ चुनाव कराने पर विधि आयोग के विचार भी सुने हैं। इस मुद्दे पर दोबारा विधि आयोग से राय ली जा सकती है।
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