पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का एलान होने से पहले ही सियासी दल मैदान में उतर चुके हैं। हर दल की ओर से तैयारी की जा रही है। मध्य प्रदेश में भाजपा उम्मीदवारों की तीन सूची आ चुकी है, लेकिन राजस्थान में मामला अटका हुआ है। वहीं, कांग्रेस अब तक किसी भी राज्य में अपने उम्मीदवार तय नहीं कर पाई है।
इन सबके बीच राहुल गांधी का चुनावी राज्यों को लेकर एक दावा चर्चा में है। अपने इस बयान में राहुल ने दावा किया कि कांग्रेस मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीत रही है। वहीं, राजस्थान में मुकाबला कांटे का है, जबकि तेलंगाना में भी पार्टी जीत सकती है। दूसरी ओर भाजपा में वसुंधरा की नाराजगी और उनके अगले कदम को लेकर भी सियासी गलियारे में चर्चा तेज है। राजस्थान की राजनीति के दोनों प्रमुख दलों में आखिर क्या चल रहा है, इस पर चर्चा करने के लिए इस बार ‘खबरों के खिलाड़ी’ में हमारे साथ रामकृपाल सिंह, विनोद अग्निहोत्री, प्रेम कुमार, अवधेश कुमार, राखी बख्शी और समीर चौगांवकर मौजूद थे। आइए जानते हैं इनका विश्लेषण…
राजस्थान में जिस तरह की संधि अशोक गहलोत और सचिन पायलट में हुई है, उसके बाद तय हो गया है कि पूरे चुनाव में सिर्फ एक चेहरा दिखाई देगा। वह चेहरा अशोक गहलोत का होगा। राजस्थान में अभी से यह दिखने भी लगा है। यह पूरा चुनाव उस तरह से लड़ा जा रहा है, जिस तरह से गुजरात में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहने के वक्त भाजपा चुनाव लड़ती थी। उस दौर में पूरे गुजरात में सिर्फ मोदी के बैनर पोस्टर होते थे। चंद चेहरों पर ही अटल या आडवाणी की तस्वीर नजर आथी थी। गुजरात विधानसभा का पूरा चुनाव भाजपा नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ा करती थी। कुछ वैसा ही राजस्थान में कांग्रेस के साथ दिखाई दे रहा है।
जहां तक वसुंधरा राजे की बात है तो वे अलग तरह की नेता हैं। उनकी मां विजयाराजे सिंधिया लोगों के बीच जाती थीं। जनता के बीच उनकी पैठ थी। वहीं, वसुंधरा लोगों से बहुत कम मिलती हैं। इसके बाद भी पूरे राजस्थान जिस तरह की पैठ उनकी है, भाजपा के किसी भी दूसरे नेता की नहीं है। ऐसे में वसुंधरा से किनारा करने का असर क्या होगा, यह देखना होगा।
समीर चौगांवकर
वसुंधरा राजे को लेकर भारतीय जनता पार्टी अभी असमंजस की स्थिति में है। मुझे लगता है कि उनकी सीट से पार्टी उनके बेटे को चुनाव लड़वाना चाहती है। हालांकि, वसुंधरा अब तक इसके लिए तैयार नहीं हुई हैं। वसुंधरा चाहती हैं कि उनके समर्थकों को टिकट मिले। वहीं, दूसरे नेता अपने समर्थकों को दिलाना चाहते हैं। इसके चलते अब तक पार्टी का स्थानीय नेतृत्व सभी सीटों पर संभावित उम्मीदवारों की सूची तक नहीं बना सका है। इसे लेकर अमित शाह राज्य के नेतृत्व पर काफी नाराज भी हुए थे। गजेंद्र सिंह शेखावत को मुख्यमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़वाने की भी बातें चल रही हैं, लेकिन जब तक सूची नहीं आती, तब तक कुछ नहीं कहा जा सकता है। जैसे ही सूची आएगी, उसके बाद स्थिति ज्यादा साफ होगी।
प्रेम कुमार
राहुल गांधी जिस तरह से समाज के अलग-अलग वर्गों से बात कर रहे हैं, उसके बाद ऐसा लगता है जैसे वे एक नेता की तरह कम, एक सैफोलॉजिस्ट की तरह ज्यादा बात कर रहे हैं। ऐसे में क्या उनके बयान से यह कहा जा सकता है कि चारों राज्यों में कांग्रेस जीत जाएगी? जहां तक भाजपा की बात है तो वहां भाजपा की कोई सूची अगले दस दिन नहीं आने वाली है। भाजपा वसुंधरा को रिएक्शन टाइम कम देना चाहती है। राजस्थान में भाजपा 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने का भी प्रयोग करने जा रही है। यही वसुंधरा से निपटने की भाजपा की तैयारी है।
राखी बख्शी
भाजपा को अगर वसुंधरा राजे से परेशानी है तो पार्टी दीया कुमारी को तैयार करती नजर आ रही है। दीया कुमारी को एक वैकल्पिक चेहरे के तौर पर पेश करने की कोशिश की जा रही है। राहुल गांधी ने राजस्थान में नजदीकी मुकाबला होने की बात कहकर यह संकेत दे दिया कि गहलोत और पायलट तैयार हो जाएं। वहीं, भाजपा में पहली बार हमने देखा है कि राजस्थान को लेकर अमित शाह थोड़ी चिंता में नजर आ रहे हैं।
रामकृपाल सिंह
कांग्रेस इस चुनाव में अगर कम से कम दो जगह नहीं जीत पाई तो इंडिया गठबंधन की वह छतरी नहीं बन पाएगी। ऐसे में कांग्रेस का एक राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर खड़ा होना लोकतंत्र के लिए अच्छी बात होगी। आज दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां हैं। एक भाजपा, जिसमें सब कुछ केंद्र में निहित है। दूसरी तरफ खड़ाऊं की स्थिति है। सचिन पायलट को आलाकमान पिछले चुनाव से ही चेहरा बनाना चाह रहा है, लेकिन अशोक गहलोत को हटा पाना आलाकमान के बस में नहीं है। एक दौर में कांग्रेस में कहा गया कि युवा लोगों को लाएंगे, लेकिन आज वो सभी युवा लोग कहां चले गए, सभी को पता है।
अवधेश कुमार
चुनाव शून्य में नहीं लड़ा जाता है। 2018 में भारी सत्ता विरोधी लहर के बाद भी कांग्रेस बहुत ज्यादा अंतर से जीत नहीं सकी थी। कुल 100 सीटों पर ही कांग्रेस पार्टी जीत पाई थी। दोनों दलों में वोटों के प्रतिशत का अंतर भी एक फीसदी से भी कम रहा था। ऐसे में पांच साल की सत्ता विरोधी लहर के बीच कांग्रेस के लिए यह चुनौती और बड़ी हो जाएगी।
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