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Bombay High Court
– फोटो : Amar Ujala
विस्तार
अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर 22 जनवरी को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को कानून की पढ़ाई करने वाले चार छात्रों ने बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जस्टिस जेएल कुलकर्णी और जस्टिस नीला गोखले की विशेष पीठ रविवार सुबह मामले की सुनवाई करेगी। जनहित याचिका (PIL) दायर करने वाले छात्रों में शिवांगी अग्रवाल, सत्यजीत सिद्धार्थ साल्वे, वेदांत गौरव अग्रवाल और खुशी संदीप बंगिया शामिल हैं, जो मुंबई स्थित एमएनएलयू, जीएलसी और निरमा लॉ स्कूल में विधि की पढ़ाई कर रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि किसी धार्मिक कार्यक्रम को मनाने के लिए सार्वजनिक अवकाश घोषित करना संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। छात्रों ने तर्क दिया कि कोई राज्य सरकार किसी भी धर्म के साथ जुड़ नहीं सकती या उसे बढ़ावा नहीं दे सकती। याचिका में कहा गया है कि एक हिंदू मंदिर के उद्घाटन में खुले तौर पर भाग लेने, इसका जश्न मनाने और इस तरह एक विशेष धर्म से जुड़ने का सरकार का फैसला धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों पर सीधा हमला है।
पार्टी की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकती ऐसी घोषणा…
छात्रों का कहना है कि सार्वजनिक अवकाश की घोषणा के संबंध में कोई भी नीति सत्ताधारी राजनीतिक दल की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकती। अवकाश की घोषणा किसी राष्ट्रभक्त या ऐतिहासिक व्यक्ति की स्मृति में की जा सकती है, लेकिन समाज के एक विशेष वर्ग या धार्मिक समुदाय को खुश करने के लिए रामलला के अभिषेक का जश्न मनाने के लिए नहीं। याचिका में कहा गया है कि ऐसी छुट्टियों के परिणामस्वरूप शैक्षणिक संस्थानों, बैंकिंग संस्थानों, सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक सेवाओं के बंद होने के कारण शिक्षा का नुकसान, वित्तीय असफलताएं और शासन और सार्वजनिक कार्यों में व्यवधान हो सकता है।
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