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ब्रिटेन और चीन के रिश्ते काफी समय से तनावपूर्ण चल रहे हैं। अब ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने के बाद ब्रिटेन के विदेश मंत्री चीन की यात्रा पर हैं। ऐसा 5 वर्ष बाद हो रहा है, जब ब्रिटेन का कोई विदेश मंत्री चीन गया है। विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने बुधवार को चीन की बहुप्रतीक्षित यात्रा शुरू की। दोनों देशों के बीच हाल के वर्षों में कमजोर हुए द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने की कोशिश के तहत वह यहां पहुंचे हैं। साथ ही वह यूक्रेन पर रूसी हमले के खिलाफ समर्थन भी जुटाना चाहते हैं। ब्रिटेन के किसी विदेश मंत्री की पिछले पांच वर्षों में चीन की यह पहली यात्रा है। यह, पूर्व ब्रिटिश उपनिवेश हांगकांग में नागरिक स्वतंत्रताओं पर पाबंदी, शिंजियांग क्षेत्र में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, रूस के लिए चीन के समर्थन और अमेरिका के साथ ब्रिटेन के करीबी सुरक्षा संबंधों को लेकर दोनों देशों (ब्रिटेन और चीन) के रिश्तों के कमजोर पड़ने को रेखांकित करती है।
क्लेवरली ने सबसे पहले उपराष्ट्रपति हान झेंग से मुलाकात की, जिन्होंने कहा कि यह यात्रा द्विपक्षीय संबंधों के स्थिर विकास को बढ़ावा देगी। क्लेवरली दिन में अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मिलेंगे, जो सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी विदेश मामलों के शीर्ष अधिकारी हैं और हाल में वह अपने पूर्वाधिकारी छिन कांग को हटाये जाने के बाद अपने पूर्व पद पर फिर से बहाल हुए हैं। मंगलवार को, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि ब्रिटेन ‘‘परस्पर सम्मान, परस्पर सहमति बढ़ाने और चीन-ब्रिटिश संबंधों के स्थिर विकास को बढ़ावा देने लिए हमारे साथ मिलकर काम करेगा।
क्या है यात्रा का मकसद
’’ क्लेवरली ने कहा है कि वह शिंजियांग और हांगकांग जैसे मुद्दे उठाएंगे और उनके इस बात पर जोर देने की उम्मीद है कि वैश्विक मंच पर चीन अपने प्रभाव का इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ करे, जिसमें यूक्रेन में रूस के आक्रमण को मदद बंद करना और दक्षिण चीन सागर में भू-राजनीतिक तनाव घटाना शामिल है। ब्रिटेन पहले भी कई बार यूक्रेन युद्ध को लेकर चीन को नसीहत दे चुका है। यूक्रेन पर रूस के हमले का चीन द्वारा समर्थन किए जाने के चलते ही ऋषि सुनक के पीएम बनने के बाद भी अब तक चीन और ब्रिटेन के रिश्ते नहीं सुधर सके हैं। अब दोनों पक्ष रिश्तों को सामान्य करने की पहल कर रहे हैं। इस दौरान ब्रिटेन ने चीन के सामने यूक्रेन में मानवाधिकार का भी मुद्दा उठाया और रूस की बर्बरता के खिलाफ समर्थन जुटाने का प्रयास किया। (एपी)
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